मुखौटा
कल मेले में कुछ चेहरे देखे
कुछ नए, पुराने, कुछ अलग
वह चमकती आँखें
जैसे सितारों को झुटला देती
वह विशाल घूमता पहिंया
उस में सवार मस्ती के गुब्बारे
वह चीखती आवाजें
जैसे चीरती आसमान
करतब दिखाती वह माँ
रस्सी पे चलती, नाचती नचाती
उसके छनकते घुंघरू
जैसे नन्ही की किलकारियां
वह मुखौटे बेचता आदमी
सूरतों में सीरतें टटोलता
बचे हुए मुखौटों से बोलता
"शायद कुछ लोग अब भी चेहरों से बोलते हैं"